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Parth AroraOffline

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    Parth Arora

    3 months, 2 weeks ago

    Encoding Values Through A Story : Understanding The Significance of Jupiter’s Advice And Knowledge

    Gratitude: Om namah Shivay , Thankyou Bholenath ji for enriching my teacher Deepanshu giri’s soul with knowledge and enlightenment and may he always bless his students and me with his divine words of jyotish gyan and lifestyle too.

    Today Let’s Hear A beautiful Story Of an Old Time , And see what we can learn from the story and apply it in our life too –

    एक बार की बात है, एक आदमी अपनी पत्नी के साथ रहता था। वह आदमी कोई काम नहीं करता था और अपने परिवार को चलाने में असमर्थ था। फिर एक दिन उसकी पत्नी अपनी पड़ोसन वाली के पास जाकर कुछ सिक्के उधार मांगती है। पड़ोसन कहती है कि मैं आपको पाँच सिक्के दे रही हूँ, आप जितना जल्दी हो सके, इसको लौटा देना। वह सिक्के लेकर आदमी की पत्नी घर वापस आती है और उसको वह सिक्के थमा कर कहती है कि आप इन सिक्कों को लेकर जाएँ और कुछ ऐसा काम ढूँढे जिससे हमारा घर चल सके।

    आदमी अपने घर से वह सिक्के लेकर चला जाता है और खोजता है कुछ ऐसा काम जिससे उसको भविष्य में भी कमाई करने में तकलीफ न हो। चलते-चलते वह एक ऋषि को देखते हैं, जो कुछ लोगों को ज्ञान एवं भक्ति की बातें बता रहे होते हैं। वह आदमी थोड़ा सा आराम करने का सोचकर वहीं कुछ लोगों के बीच बैठकर ऋषि की बातें सुनता है। उसको वह ऋषि बहुत ज्ञानी लगते हैं।

    सब कुछ खत्म हो जाने के बाद वह आदमी ऋषि के पास जाकर कहता है कि हे ऋषि, मैं बहुत प्रयास कर रहा हूँ कुछ ऐसा काम ढूँढने का इन पाँच सिक्कों की मदद से, जिससे मेरा और मेरी पत्नी का गुजारा चल पाए। आप कृपया करके मेरी मदद करें और बताएं कि मैं क्या कर सकता हूँ। ऋषि जवाब देते हुए कहते हैं कि मैं तुम्हें पाँच वचन दूँगा इन पाँच सिक्कों के बदले, जो तुम्हारे काम आएँगे। आदमी यह सुनने के बाद बहुत बड़ी दुविधा में पड़ जाता है क्योंकि उसको समझ नहीं आता कि उसकी जो आख़िरी उम्मीद है, वह पाँच सिक्के हैं—उनको ऋषि को देकर वचन लेना सही रहेगा या नहीं।

    आदमी थोड़ी सी सोच-विचार के बाद ऋषि को वह पाँच सिक्के देने का निर्णय लेता है और उसके बाद ऋषि के हाथ में वह पाँच सिक्के थमा कर उनके चरणों के नीचे बैठकर उनकी बात सुनने का इंतजार करता है। ऋषि बोलना शुरू करते हैं:
    सबसे पहला वचन – दो या दो से अधिक ज्येष्ठ लोग अगर कुछ कहें तो उसे मान लेना, कभी मना मत करना।
    दूसरा वचन – अपनी पत्नी को कभी भी पूरी बात मत बताना या उसको अलग तरीके से बताना।
    तीसरा वचन – अपने राजा से कभी भी झूठ नहीं बोलना।
    चौथा वचन – कभी भी किसी का पर्दाफाश नहीं करना।
    आखिरी और पाँचवाँ वचन – जब कभी भी कहीं पर खुशी, ज्ञान की बातें एवं सत्संग चल रहा हो, सब काम छोड़कर सबसे पहले उसे सुनना।

    यह सब सुनकर आदमी ऋषि को धन्यवाद बोलकर आगे की ओर प्रस्थान करता है। वह देखता है कि एक बूढ़ा व्यक्ति ज़मीन पर लेटा हुआ है। जब वह उनके पास जाकर उनकी साँस को महसूस करने की कोशिश करता है, तो उसे पता चलता है कि वह आदमी अब ज़िंदा नहीं रहा। तभी कहीं से दो बूढ़े व्यक्ति चलते हुए जा रहे होते हैं और मरे हुए व्यक्ति को देखकर आदमी को यह सलाह देते हैं कि तुम इनके शरीर को दफ़ना दो। तभी आदमी को ऋषि का पहला वचन याद आता है जहाँ ऋषि कहते हैं कि जब भी दो या दो से ज़्यादा ज्येष्ठ लोग कुछ कहते हैं तो उसे मान लेना चाहिए। आदमी बिना कुछ सोचे उन अधेड़ व्यक्ति के शरीर को दफ़नाने लग जाता है। तभी आदमी को उनकी जेब में 100 सोने की मुद्राएँ मिलती हैं। वह यह पाकर बहुत खुश हो जाता है और अपने घर की ओर प्रस्थान करने लगता है।

    घर पहुँचकर वह अपनी बीवी के हाथ में 100 सोने की मुद्राएँ थमा देता है। उसकी बीवी उससे पूछती है कि आपको इतना सोना कहाँ से मिला? तभी उसे ऋषि का दूसरा वचन याद आता है, जिसमें उन्होंने कहा था कि अपनी बीवी को कभी भी पूरी बात नहीं बतानी या किसी और तरीके से बतानी है। यही सोचते हुए आदमी अपनी बीवी को कहानी बनाकर यह कहता है कि मैं एक गुफा में गया था उस जगह पर, वहाँ पर मैंने सर पटका और मुझे 100 सोने की मुद्राएँ ऊपर से गिरकर मिलीं। यह सुनकर उसकी बीवी बहुत खुश हो जाती है और पाँच सोने की मुद्राएँ लेकर अपनी पड़ोसन के यहाँ निकल जाती है। अपनी पड़ोसन के हाथ में वह पाँच सोने की मुद्राएँ देकर कहती है कि आपके पास सिक्कों का उधार मैं पाँच सोने की मुद्राओं से चुका रही हूँ, और आप इसे ब्याज मानकर रख लो। पड़ोसन पाँच सोने की मुद्राएँ देखकर असमंजस में पड़ जाती है और कहती है—यह कैसे मुमकिन हुआ? तभी आदमी की बीवी अपनी पड़ोसन को अपने पति द्वारा बताई हुई झूठी कहानी बताती है। यह सब सुनकर पड़ोसन अपने पति से उसी जगह जाकर उस गुफा में सर पटकने को कहती है। उसका आदमी भी लालच में जाकर वहाँ जाकर सर पटकता है पर कुछ नहीं आता और अंत में वह अपनी पत्नी के पास आकर सारी बात बताता है और उसे बहुत गंभीर तरीके से सर में चोट भी लग जाती है।

    पड़ोसन और उसका पति दोनों राजा के पास जाकर आदमी की शिकायत करते हैं और बताते हैं कि कैसे उन्होंने उसे बेवकूफ़ बनाया। राजा यह सब सुनकर क्रोधित हो जाता है और आदमी को दरबार में बुलाकर पूछता है—तुमने ऐसा क्यों किया? तभी आदमी को ऋषि द्वारा दिया गया तीसरा वचन याद आता है, जहाँ पर उन्होंने कहा था कि अपने राजा से कभी भी झूठ नहीं बोलना। वह आदमी यह सोचते हुए राजा को सारी बात बता देता है। और राजा यह सब सुनकर खूब हँसते हैं और आदमी की चतुराई और समझदारी से प्रसन्न होकर उसे अपने दरबार में सबसे उच्च कोटि का मंत्री रख लेते हैं। आदमी यह सुनकर बहुत प्रसन्न होता है और खुशी-खुशी वह पद स्वीकार कर लेता है।

    सब कुछ अच्छा ही चल रहा था। सिर्फ एक दिन, आदमी जो अब मंत्री है, राजा के दरबार में रानी को सेनापति के साथ शारीरिक संबंध बनाते हुए देख लेता है। तभी उसके जहन में आता है कि वह राजा को जाकर सब बता देगा। लेकिन फिर एकदम उसके दिमाग में ऋषि के चौथे वचन की बात गूंजती है, जिसमें उन्होंने कहा था कि कभी भी किसी का पर्दाफाश नहीं करना। यही सोचते हुए आदमी चुप रहता है और अपने काम में लग जाता है। परंतु रानी और सेनापति को पता लग चुका था कि आदमी ने उन्हें देख लिया है और वह अब खतरे में है, क्योंकि उन्हें पता था कि आदमी राजा के प्रति निष्ठावान है।

    एक दिन रानी और सेनापति आदमी को मारने का उपाय सोचते हैं और एक योजना बनाते हैं। रानी सेनापति को बहुरूपिया बनाकर कसाई के पास भेजती है और कहती है कि उन्हें सोने की मुद्राएँ देकर यह बोलो कि दोपहर के समय जब तुम्हारी दुकान बंद रहती है, तब मैं राजदरबार से एक आदमी भेजूँगी, और जैसे ही वह आदमी तुम्हें दिखे, तुम उसका गला काट देना और उस आदमी का सर लेकर मेरे दरबार में चुपचाप आ जाना। सेनापति यह सब सुनकर बहुरूपिया बन जाता है और कसाई को जाकर रानी की सारी बात बताता है। कसाई मान जाता है और सेनापति वापस आकर रानी को इशारा करता है कि वह आदमी को भेज दे कसाई के पास।

    आदमी को रानी अपने दरबार में बुलाकर कहती है कि उन्हें मांस खाना है और वह कसाई के पास जाकर लेकर आए। आदमी रानी की आज्ञा का पालन करते हुए कसाई की दुकान की ओर निकल जाता है। उसी समय वह देखता है कि रास्ते में एक साधु बाबा सत्संग दे रहे हैं। आदमी को ऋषि जी का आख़िरी और पाँचवाँ वचन याद आता है, जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर कहीं पर भी ज्ञान की बातें एवं सत्संग चल रहा हो तो सब काम छोड़कर पहले सत्संग सुनना है। तभी वह आदमी बैठकर सत्संग सुनने लगता है और कसाई के पास नहीं जाता।

    काफ़ी देर होने के बाद जब कसाई आदमी का सर लेकर रानी के दरबार नहीं आता, तो रानी सेनापति को देखने भेजती है और इस बार घबराहट के मारे सेनापति भेष नहीं बदलता। जैसे ही सेनापति कसाई के पास पहुँचता है, तो कसाई को लगता है कि यही एक राजदरबार का आदमी लग रहा है और वह सेनापति का सर काट देता है। उसी सर को लेकर जब कसाई रानी के पास जाता है, तो रानी असमंजस में रह जाती है और उसके आगे कुछ नहीं कर पाती।

    Hope you all can learn a lot from this and try decoding it according to our current world. And we can apply these beautiful sayings in our life and live a ethical life full of bliss😄

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