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Vats BhaskarOffline

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    Vats Bhaskar

    4 months, 3 weeks ago

    जेमिनी कारक:–
    महर्षि जेमिनी अपने समय से आज तक के सबसे उत्तम तर्कशास्त्री रहे है क्या उनके द्वारा ज्योतिष को जो रूप दिया गया है वो बिना किसी तर्क के सीधा समझा जा सकता है इस बात में थोड़ा संशय है
    जब महर्षि द्वारा चर कारकों की बात कही गई तो 7 या 8 कहे गए उसका उत्तर श्री दीपांशु जी ने दे दिया के जिनके पित्र है उनका पितृ कारक extra तो उनके 8 बाकी जो सन्यासी है उनके साथ देवताओं के भी 7 क्योंकि पाराशर संहिता में प्रथम पृष्ठ पर ही लिखा है कि मैत्रेय इसमें कोई संशय नहीं के देवता ओर सिद्ध ऋषि मुनि भी अपना भविष्य जानने को उत्सुक होते है तो उनके 7 कारक ।
    अब सवाल उठता है कि ये राहु केतु में से कारक माना किसे जाए।
    सामान्य नियम तो कहता है कि राहु और केतु में से जिसका लग्न और लग्नेश से संबंध वो आत्म कारक
    पर यह महर्षि जेमिनी ने स्पष्ट क्यों नहीं किया या तो वो जानते थे कि प्रत्येक मनुष्य आत्म के विषय में जान नहीं सकता और उसमें भी पूर्व जन्म के प्रतीक राहु केतु का आत्म से संबंध इसे ओर जटिल बना देगा तो इस विषय को बताया ही न जाए । इसका एक कारण ये भी है कि इतने उपनिषद् आत्म को समझा रहे है और कह रहे है कि उसे न कानो से सुना जा सकता है न आंखों से देखा जा सकता है तो ज्योतिष उस ब्रम्ह स्वरूप आत्मा को आत्म कारक से कैसे इतना सरलता से स्पष्ट कर पाती।
    तो मोटा मोटा ये मान लिया जाए कि महर्षि जेमिनी ने जिस आत्म कारक की बात कही है वो आत्मा न होकर वो निज निजता पर्सनल के भाव को स्पष्ट कर रहे है।
    आत्म कारक की परिभाषा भी देखे तो यही है कि जिसने सबसे अधिक अंश प्राप्त किए हो पर इसे उल्टा पढ़ा जाए तो ये क्या यह सिद्ध नहीं कर रहा कि जिस ग्रह द्वारा सबसे अधिक उस राशि को भोगा हो। ग्रह की परिभाषा भी तो यह है जो ग्रहण करता है वह ग्रह है इसका अर्थ उस राशि के कुछ है जिसे ग्रह ग्रहण करते है और उसे फिल्टर करके जातक तक पहुंचा रहे है।
    पर वो ग्रहण क्या कर रहे है तो राशि में नक्षत्र है नक्षत्रों में पद है हर पद धर्म अर्थ काम मोक्ष का प्रतिनिधि है और ये चारों तभी सृजित हो सकते है जब इनका सर्जन पूर्व में किया गया हो ।
    अब समझ में आने लायक स्थिति ये है कि जन्म के समय राशि में स्थित ग्रह जिसके द्वारा नक्षत्रों पर गति करके सर्वाधिक पूर्व में किए कर्मों को ग्रहण कर लिया हो वह आत्म यानि निजता का नेतृत्व करेगा
    ये उसी प्रकार है जैसे किसी विभाग में सर्वाधिक समय तक सेवा देने वाले कार्मिक को सबसे उच्च पद प्राप्त होता है क्योंकि वो विभाग की कार्यशैली की सबसे गहन जानकारीw रखता है और विभाग की पूर्व में की गई कार्यप्रणाली को भी वह अच्छे से जनता है वह जब उच्च पद पर आसीन होगा तो पूर्व के अनुभव से जो गलतियां की है या जो अच्छा कार्य किया है उसे अपने स्वभाव अनुसार आगे बढ़ाएगा।
    अब इसे थोड़ा तथ्यों से आजमा के देखा जाए :–
    जब सूर्य भगवान आत्म कारक होते है इसका अर्थ है कि उस समय आकाश में सबसे अधिक किसी राशि के नक्षत्रों का भ्रमण सूर्य भगवान के द्वारा किया गया है
    तो सूर्य भगवान तो नैसर्गिक आत्मा के प्रतीक है तो जिस जातक के आत्म कारक सूर्य भगवान होंगे वो क्या आत्म स्वरूप को जान गया मेरा मानना है नहीं सूर्य भगवान स्वयं ब्रम्ह स्वरूप है परंतु जब वह ग्रह रूप में फल देते है तो वह पूर्व कर्मों के अनुसार फल करते है उनका स्वभाव एवं स्थान यह निर्धारित करेगा कि व्यक्ति का निजत्व उसे सबसे अधिक किस दिशा में खींच रहा है।
    अगर वह मकर राशि में है और आत्म कारक है तो स्थिति क्या होगी मकर राशि स्टेटस को बताती है सिंहासन को बताती है वहां सूर्य भगवान का स्वभाव भी मेल खाता है उन्हें दिग्बल भी कालपुरुष की इसी राशि भाव में मिलता है तो सब अच्छा होना चाहिए ।
    पर इसे ऐसे देखा जाए कि सूर्य भगवान मकर राशि का सर्वाधिक अंश भोग चुके है एवं वह कुंडली के सबसे अनुभवी ग्रह है जिन्हें जातक के सर्वाधिक कर्मों के बारे में जानकारी है जो जातक के निजत्व को स्थापित करते है। इस हिसाब से तो वह जातक कई जन्मों से स्टेटस को भोग चुका है कर्म के सिद्धांत में महारत हासिल कर चुका है उसका सबसे नजदीक संबंध मकर राशि के स्वभाव से भले हो पर वो अब उन्हें प्राप्त करने हेतु कर्म क्यों करेगा उसने तो सबसे अधिक उसे ही भोगा है सर्वाधिक आकर्षण तो वहां होगा जो सबसे कम प्राप्त हुआ है जो दार कारक है सप्तम है संतुलन है निजत्व में तो सदैव असंतुलन होगा ।
    उसे तो आत्म को समाप्त कर आत्मा तक जाना है उसे तो केतु चाहिए ।
    ज्योतिष का प्रारंभिक विद्यार्थी होने से मेरी इच्छा है कि दीपांशु जी सर एक बार एक मास्टर क्लास ले कर महर्षि जेमिनी द्वारा जो ये कारक चक्र समझाए है इनको एक दम जड़ से समझाए कि आखिर महर्षि समझना क्या चाहते है।
    धन्यवाद

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